Khwab ke Do Din is a novel with novel idea. Its first part deals with the media scene of 90s and second part with the start of 21st century. Two dreams and two awakenings. In fact his first novel CHINTA GHAR and second, COMRADE GODSE are called Do Khwab.
Published by Rajkamal Prakashan @2012
Preface : मैं बुरी तरह सपने देखता रहा हूँ। चूँकि सपने देखना-न-देखना अपने बस में नहीं होता, मैंने भी इन्हें देखा। आप सब की तरह मैंने भी कभी नहीं चाहा कि स्वप्न फ्रायड या युंग जैसों की सैद्धांतिकता से आक्रांत होकर आएँ या प्रसव पीड़ा की नीम बेहोशी में अखिल विश्व के पापनिवारक-ईश्वर के नए अवतार की सुखद आकाशवाणी के प्ले-बैक के साथ।
मीडिया के ईथर में तैरते हुए 1992 की नीम बेहोशी में चिंताघर नामक लंबा स्वप्न देखा गया था और चौदह बरस अपने सिरहाने रखी 2006 की डायरी में जो सफे मिले, उनका नाम था – कॉमरेड गोडसे। ऐसे जैसे एक बनवास से दूसरे बनवास में जाते हुए ख्वाब के दो दिन।
कुछ लोग कहते हैं, तब अखबारों के एडीटर की जगह मालिक के नाम ही छपते थे, चौदह साल बाद कहने लगे इश्तहारों और सूचनाओं के बंडलों पर जो एडीटर का नाम छपता है, वह मालिक के हुक्म बिना इंच भर न इधर हो, न उधर।
तब एक लड़का था जो चिंताघर में घूमता, मुट्ठियों में पसीने को तेजाब बनाता, दियासलाई उछालना चाहता था। चौदह साल बाद दो हो गए, जो जोरदार मालिक और चमकदार एडीटर के चपरासी और साथी की शक्ल में आत्माओं के छुरे उठाए फिरते हैं।
पहले दिन से चौदह बरस बाद के बनवासी दिन टकरा-टकरा कर चिंगारियाँ फेंकते हैं। इन चिंगारियों में हुई सुबह ख़्वाबों को खोल-खोल दे रही है।
आज इस सुबह सपनों की प्रकृति के अनुरूप भयंकर रूप से एक-दूसरे में गुम-काल, स्थान और पात्रों के साथ मैं अपने सपनों की यथासंभव जमावट का एक चालू चिट्ठा आपको पेश करता हूँ।
-भूमिका से
मूल्य | : | $ 10.95 | ||
प्रकाशक | : | राजकमल प्रकाशन | ||
आईएसबीएन | : | 9788126723423 | ||
प्रकाशित | : | जनवरी 01, 2012 | ||
पुस्तक क्रं | : | 5272 | ||
मुखपृष्ठ | : | अजिल्द |