Home » Columns » पिया घर आया

वे लौट आए हैं।

rahulji

चिड़िया फिर चहचहाईं। पर्चे फिर फटने को तैयार हुए। बांहें फिर चढ़ने को अकुलाईं। आशा उठी, अधीरता के कंधे पर बैठकर उत्साह के कान में गीत गाने लगीं। मंच बना, हवा चली, चेहरे खिले, फिर तेरी कहानी याद आई।

किसान दुखी थे। खेती करते-करते दुख कलावती से उठकर लीलावती हुआ जा रहा था। गुड़गांव की जमीनों पर कानूनी नुस्खों के सफल प्रयोग की बेताबी के बावजूद जनता कभी रॉबर्ट वाड्रा को देखती, कभी कोयला खदानों के किस्से समझती और कभी टूजी-थ्रीजी के नफे-नुकसान को सीएजी के हिसाब से मिलाती। बजट छाती पर, दीया बाती पर। विचित्र समय की विकट चाल। धर्म के अलावा कोई धंधा न दीखे और कोसने के अलावा कोई तरकीब न सूझे।

ऐसे अद्भुत समय में वे गए।

आदमी जाता क्यों है? क्या हर आदमी ऐसे जाता है? और हर आदमी जा क्यों नहीं सकता? जब हर आदमी को हक है कि वह जहां चाहे जाए, तो उनके जाने पर इतना बावेला क्यों? पूछा तो कबीर ने कहा, जल में कुंभ, कुंभ में जल है। पेच इतना सा है कि यहां कुंभ का कारखाना और जल का भंडार, दोनों का स्रोत एक था। सो संकट यह था कि कबीर को जनपथ पर घूमने का नक्शा थमाकर, वे गए।

तमाम लोग छुट्टी पर जाते हैं। कॉमरेड होनोलुलू और साधु गोवा जा सकते हैं। वैज्ञानिक झाड़-फूंक वाली दुनिया में गायब हो सकते हैं। पंछी जहाज से उड़कर फिर जहाज पर आ-जा सकते हैं। कुछ लोग शाम को लौटने के बाद महसूस करते हैं कि सुबह का भूलना ज्यादा ठीक था, तो वे फिर लौट जाते हैं। ऊबे हुए, उदास, स्थिर चित्त, ध्यान मग्न, उदात्त, महामना, परम पवित्र, एकाकी, लीलालीन- सब इस भीड़ से भागते हैं और भीतर एक लंबी टॉर्च डालकर अंधेरे कुएं से सुख की बाल्टी खींचते हैं।

वह टॉर्च क्या है? उसकी बैटरी कहां से आती है। वह कुआं कौन-सा है, जो भीतर अतल में पड़ा है। वह बाल्टी किसकी है और रस्सी किसने उपलब्ध कराई?

धनबाद, पटना, गुड़गांव, जलगांव, बदरपुर, चमौली, मनाली, रणथंभौर, दूध तलाई आदि-इत्यादि किसी भी जगह जाकर पूछो, जनता कहती है – सत्य की सब्जी उसी किचन में पकती है जिसके पास असत्य के ऑर्गेनिक खेत होते हैं।

यहां रस्सी की फैक्टरी वाले, बाल्टी का धंधा करने वाले, बैटरी की सप्लाई के भरोसे जिंदा, कुएं की खुदाई और अंधेरे के कारोबार पर शेयर खेलते बाजीगर हवा में उनका साइन बोर्ड बनाते रहे और वे चले गए।

कुछ कहते हैं, यह छुट्टी थी। कुछ कहते हैं, यह अज्ञातवास था। कुछ कहते हैं, यह आत्ममंथन का एकांतवास था। कुछ कहते हैं, ‘रिलांच’ के पहले का कमर्शियल ब्रेक था।

पर सच वे कहते हैं जो बस कहते हैं। वे कहते हैं, पिया घर आता है तो उसकी ‘रिलांचिंग’ नहीं कहाती। वह तो सदैव नया, सतह से ऊपर, मनोहर, सर्वव्यापी होता है। वह अज्ञात में भी सर्वज्ञात है। वह सत्तासीन नहीं होता, स्वयं सत्ता होता है। जिन्हें उससे डाह है, वे जनपथ पर जाएं और कबीर से कागज लेकर पढ़ें –

‘उठा बगूला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास
तिनका तिनके से मिला तिनका तिन के पास।’

और अंत में…

‘छप्पन छाती’ का जवाब ‘छप्पन छुट्टी’ से। पुराणों में इसके पक्के वैज्ञानिक प्रमाण हैं। रिसर्च पेपर तैयार करने के लिए योगेन्द्र यादव की अध्यक्षता में मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी जल्द ही एक कमेटी बना रही हैं।

-राधिका सिंह, देहरादून ने भेजा