Home » Columns » बोलो जी, तुम क्या-क्या खरीदोगे?

नीलामी, निर्मलता और सरकार का संबंध इतना गहरा है कि एक के बिना दूसरी घटना संभव नहीं होती। अगर सरकार न बने, तो नीलामी कौड़ियों में जाती है और निर्मलता धरी रह जाती है। अगर सरकार बने, तो निर्मलता सूट में समा जाती है।

कवि बहुत दिनों के बाद रौ में आया। उसके दीये में तेल पड़ा। रोशनी थोड़ी ऊपर उठी। बजट के पहले और बजट के बाद की बुकिंग में उछाल आया। कवि सम्मेलन के आयोजक को लिखी चिट्ठी में रेट थोड़ा बढ़ाया। पुरानी कविता को दुरुस्त किया। तीन नए छंद जोड़े। दो नए शीर्षक लिcourtesy.manjulonsuitखे। भेंट में आई बोतल के तीन घूंट लिए। फिर ध्यान आया, जिस बोतल से उसने तीन घूंट लिए, उस बोतल को जनपथ पर नीलाम करे, तो कितनी बोली लगेगी? बोली से जो पैसा आए, उसे अगर वह जनता के अंतिम हिस्से से जुड़े देशी ठेके के बाहर बैठे नमकीन वालों को एक-एक स्टूल बांट दे, तो जनधर्मी अभियान की कितनी संभावनाएं खुल जाएंगी? विदेशी के विरुद्ध देशी का यह कितना अद्भुत संदेश होगा।
बोतल की नीलामी का विचार अत्यंत हृदयस्पर्शी विचार था। उसने कवि की आत्मा को थोड़ा ऊपर उठा दिया।

कवि आत्मा के उठान का आनंद लेना चाहता है और नीलामी की हवा उसे प्रेरित कर रही है। कभी नीलामी का विचार साबुन हो जाता है। कभी वही विचार पानी की शक्ल में आता है। वह पहले विचार को लगाकर, दूसरे विचार से नहाने लगता है। अचानक उसे लगता है कि वह धुलकर निर्मल हो गया है।
निर्मल होने के लिए नीलामी एक नया विचार है। कवि इस विचार को भी नीलाम करके प्राप्त राशि का वितरण पटना, सूरत से लेकर दिल्ली तक हॉटलाइन स्थापित करने में करना चाहता है।
‘आत्मा वगैरह की नीलामी का अब कोई खास मूल्य नहीं रह गया है’, राजपथ की हवा खाए एक प्रखर चिंतक ने कहा।
‘नीलामी में बड़ी मुश्किल आती है। बोली लगाने के लिए आत्माएं मिलना मुश्किल हो रही हैं। आदमी मिल जाते हैं। आत्मा दिखे तो बेचें,’ एक अन्य प्रबल विचारक ने कहा, जो बिहार में सीएम की कुर्सी का हिसाब लगाते-लगाते ऊंघ रहे थे।

‘नीलामी महत्त्वपूर्ण है। यदि जनता के पक्ष में नीलामी आवश्यक हो जाए और यदि मेरे नाखून की नीलामी से देश के कैल्शियम की वृद्धि में योगदान हो सके, तो मैं सारे नाखून दे सकता हूं।’ जेल से लौटे घोर देश सेवक ने प्रस्ताव किया।

कवि ने तीनों को बताया कि नीलामी का आयोजन निर्मलता के उत्सव के रूप में होना चाहिए। होने को तो कोयले की खदानों की नीलामी हुई, तो पता चल गया कि पिछली सरकार ने सीएजी को चुन-चुनकर गालियां क्यों दी थीं। सीएजी ने संभावित लूट का तब जो आंकड़ा दिया था, वह भी पीछे छूट गया है। पर पिछली सरकार के मंत्री-प्रवक्ता अब तक हंस रहे है। वे नीलामी से निर्मल होते-होते बच गए। उन्हें मालूम है, जनता को भाषणों में मजा आता है। अपनी लूट को वे एक साल के भीतर, दूसरों की लूट के प्रचार से निरस्त कर देंगे।

प्रबल विचारक ने मुंह बनाया, ‘अंतरात्मा भी कोई चीज होती है।’

प्रखर चिंतक ने पान थूका, ‘आत्मा के भीतर अंतरात्मा होती है। आत्मा आदमी में होती है। आदमी सूट पहन सकता है। सूट बड़ी चीज होती है। अंतरात्मा, आत्मा पहनती है। पर आत्मा सूट नहीं पहनती। वह सिर्फ शरीर पहनती है।’
कवि को लगा दर्शनशास्त्र में बात गुम जाएगी। कुछ लोगों को आत्मा वाली बात ही सूट नहीं करती। सूट की तो बात छोड़ दीजिए।

‘पीएम का सूट चार करोड़ से ऊपर में गया। यह नीलामी गंगा की शुद्धि के काम आएगी।’ कवि ने नीलामी की उदात्तता को फिर रेखांकित किया।

‘इससे गंगा का फायदा हुआ, पीएम का फायदा हुआ या उनका फायदा हुआ जो गंगा में नहाने को उत्सुक हैं?’

‘इनमें से किसी को नहीं। दरअसल निर्मलता के लिए नीलामी के विचार को फायदा हुआ। अब चाहें, तो कुछ लोग अपनी शालें, छड़ियां, साड़ी, कुर्ते आदि भी नीलाम कर सकते हैं।’

‘लेकिन जब देश में आपकी कहीं भी सरकार न हो, तो सोने की अंगूठी भी कबाड़ के भाव जाती है।’

‘यानी निर्मलता के लिए नीलामी से पहले, सरकार जरूरी है।’

‘बिल्कुल! वर्ना आप चलते चुनाव में दाढ़ी बढ़ाकर निर्मलता-निर्मलता पुकारें, हारते ही विदेश घूमने चले जाएं और लौटें, तो ‘क्लीन शेव’ हों, तब शेविंग क्रीम या रेजर का भी सही रेट नहीं मिलता।’

कवि के पास विचारकों की भीड़ इकट्ठा हो गई है। कुछ सरकार में रहकर निर्मलता लूटना चाहते हैं, कुछ सरकार में न रहने के दुख में निर्मलता का भंडारा करने पर तुले हैं।

अनुभव कहता है, नीलामी, निर्मलता और सरकार का संबंध इतना गहरा है कि एक के बिना दूसरी घटना संभव नहीं होती। अगर सरकार न बने, तो नीलामी कौड़ियों में जाती है और निर्मलता धरी रह जाती है। अगर सरकार बने, तो निर्मलता सूट में समा जाती है।

कवि, लेडी माउन्टबेटन की चिट्ठियों से लेकर गांधी के चश्मे तक की नीलामी का हिसाब लगा रहा है। धरोहर के संदेश, विरासत के सरोकार, सादगी की शक्ति और प्रेरणा के प्रदर्शन का अपना-अपना मीटर है।

वह कुर्ता, वह सादगी, वह हाथ जोड़ना, वह पल्लू, वह बांहें-चुनाव निपटते ही पेज-थ्री की अदा से अदल-बदल हो जाता है।

‘उपहारी’ बोतल की नीलामी का विचार अभी भी कवि की आत्मा में कायम है। पर उसे लग रहा है कि पहले सैफई में सवा लाख लोगों के समाजवादी तिलक में जाकर आ जाए। लौटने के बाद सोचेगा कि निर्मलता के लिए बोतल की नीलामी का उपयुक्त समय क्या होगा?

तब तक देशी ठेके के बाहर नमकीन वाले बिना स्टूल काम चलाएं।

आखिर निर्मलता की प्रतीक्षा में इतना तो बनता है।

Cartoon courtesy : manjul

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