ज़रूरी नहीं कि शाम की शफ़क़ आप भी उसी तरह से देखें, जैसे मैं देखता हूँ. ज़रूरी नहीं कि उसकी सुर्खी आपके अन्दर भी वही रंग घोले , जो मेरे अन्दर घोलती है . हर लम्हा, हर इन्सान अपनी तरह खोल कर देखता है . इसलिए उन लम्हों पर मैंने कोई मुहर नहीं लगाई , कोई नाम नहीं दिया.
बोसकीयाना का मतलब गुलज़ार के अनगिनत चाहने वालों के लिए उस मर्क़ज़ की तरह है जिसकी ऊष्मा से वे हर पल अपने-आपको और अमीर बनाते जाते हैं . उसी बोसकीयाना में यशवंत व्यास ने दर्ज किए गुलज़ार के शब्द .
शायरी, फ़िल्में, लोग और चाँद…सब साथ आए.
एक आत्मीय बैठक,एक प्रेमिल संगत
एक भरा-पूरा ,अद्वितीय अनुभव है – बोसकीयाना.
शायर-फ़िल्मकार गुलज़ार के चाहने वालों के लिए एक अनिवार्य किताब.