पिछले हफ्ते तीन अद्भुत घटनाएं एक साथ घटीं।
शाहरुख खान ने गिनती के शो में अपनी नई फूहड़ फिल्म से सौ करोड़ कमा लिए और दावा है कि इस महान फिल्म पर जया बच्चन की विपरीत टिप्पणी से खान साहब नाराज हैं। एक हमारे आदरणीय भारत रत्न, भगवान सचिन तेंदुलकर ने करोड़ों प्रशंसकों को अपनी आत्मकथा भेंट करते हुए रहस्य खोला कि कोच चैपल ने हमारा क्रिकेट ही बर्बाद कर दिया था। जब ये महान लोग अपनी विराट सफलताओं के ढोल पीट रहे थे, तब एक खबर और बस्तर में घट रही थी। उस पर करोड़ों का दांव नहीं लगा था। वह सिर्फ एक रेडियो का मामला था। सरकारी हिसाब से भी सिर्फ आठ सौ रुपए की कीमत वाला। उसे मंत्रीजी के हाथों लेने के लिए अड़तालीस घंटों का सफर करके कुछ लोग रवाना किए गए, तो उन्हें खाने के लिए मुट्ठी भर चावल मिला था।
पंचायतों ने इन आदिवासियों को इस अद्भुत यंत्र की प्राप्ति के लिए गांवों से रवाना किया। वे घंटों चलकर शहर पहुंचे। कार्यक्रम दोपहर का था। मंत्री जी शाम को पधारे। रेडियो टिकाए और निकल लिए। रात में पैदल अपने गांवों की ओर जंगलों के रास्ते लौटने से बेहतर उन्हें खुला आसमान चुनना सुरक्षित लगा। उस मुट्ठीभर चावल के भरोसे कल्याणकारी कृपा का सपना देखने की उम्मीद लिए उन्होंने वहीं धरती का बिछौना चुना ताकि दूसरे दिन उजाले की किरण हो तो वे इस अद्भुत खिलौने के साथ घरों को लौट सकें।
शाहरुख खान इस पर ‘च्च – च्च – च्च’ भी नहीं कर सकते। क्योंकि अहंकार, आत्मलीनता, कामयाबी और बाजार की लूट में तीसरी श्रेणी के लतीफे का वमन जब धन-वर्षा का संगीत बजा रहा हो तो वे ज्यादा से ज्यादा यह खबर सुनकर कोई मजाक उड़ाता ‘स्पूफ’ का टुकड़ा भर स्क्रिप्ट में डालने की मेहरबानी कर सकते हैं। जब व्यक्ति जनता की जेब से उसकी कलात्मक बुद्धि का अपमान करके रुपए निकालने में सफल हो सकता हो, तो वह मानवीय सम्मान की करुणा का क्या अचार डाले? सबका अपना धंधा होता है। शाहरुख ने मनोरंजन की कलात्मक गालियों का फॉर्मूला विकसित करने का धंधा चुना, तो इसमें किसी को तकलीफ क्यों हो? मगर तुर्रा यह है कि वे महान भी हैं और अमेरिका के साम्राज्यवाद से लेकर राजनीतिज्ञ ममता बनर्जी तक लेक्चर झाड़ते रहते हैं। वे क्रिकेट की टीमें खरीदते हैं और स्टेडियम के गार्ड को जमीन में उतार देने तक क्रोध के अवतार हो जाते हैं। वे अपनी सफलता के झाड़ू से हर किसी का मजाक उड़ा सकते हैं। तो, वे बस्तर के लिए कह सकते हैं, ‘आइडिया फिट है। एक तेल की शीशी, मेरी फिल्म के गाने और रेडियो में डालने वाली बैटरी की कंपनी पकड़ लाओ, दो परसेंट में आदिवासियों का कल्याण कर लेना, बाकी के लिए मेरे सेक्रेटरी से पहले तय कर लो।’
फिल्म के इन भगवान से जो क्रिकेट के व्यापारी भी हैं, छूटें, तो क्रिकेट के भगवान से मिलें। प्रतिभा को प्रणाम है मगर ऐसी ‘कृपा’ भी कभी-कभी ही आती है कि स्टेडियम में एक राजनेता घुसे, एक सेंचुरी हो और भारत रत्न भी हो जाए। उन्होंने आत्मकथा लिखी तो इन्हीं से अब पता चला कि एक कोच होता था, जिसने क्रिकेट को बर्बाद करने की कोशिश की थी। पर ये कुछ बोलते नहीं थे क्योंकि इन्हें अपने खेल पर ध्यान देना था। ध्यान के मामले में इनका समर्पण गजब का है। संसद का सत्र चल रहा था। वे सांसद भी बनाए गए हैं। इन्होंने संसद को अंगूठा दिखाकर उस दिन दिल्ली में एक प्रोडक्ट का प्रमोशन करने का काम चुना। वे संभवत: पहले भारत रत्न हैं जो, भगवान भी हैं और बाजार में माल भी बेचते हैं, टैक्स में छूट भी चाहते हैं और भूलकर भी आत्मकथा से लेकर अब तक न आईपीएल फिक्सिंग न क्रिकेटरों के करप्शन पर उन्होंने कोई भी शब्द कहने की मेहरबानी की है। एक ऐसा व्यक्ति जिसे एक खेल की खातिर, समाज, समय, तंत्र और राज्य अपनी समूची ‘श्रद्धा’ का श्रेष्ठ अंश दे दे, वह उस अंश की शक्ति का किंचित मात्र भी इस्तेमाल उसी भव्य खेल की सड़ांध के विरुद्ध नहीं करता। अपने संघर्षों का बाजार बनाने की प्रतिभा का पूरा उपयोग जारी रखता है किंतु अर्जित प्रकाश से अंधेरे कोनों की गंदगी के विरुद्ध जाने का इरादा रंच मात्र भी नहीं दिखाता। उसे रेडियो की कमेन्टरी में सिर्फ छक्कों से गिरती रुपयों की खनखनाहट का भगवान मान लेने में ही भलाई है।
इन शहंशाहों-भगवानों की करोड़ों की बातों के बीच नैतिक मूल्यों का बॉक्स ऑफिस न सिर्फ डराता है, बल्कि आक्रामक रूप से कहता है कि एक गरीब आदिवासी को यदि एक मुट्ठी चावल के भरोसे दो दिन पैदल चलवा कर एक रेडियो की आशा बेची जा सकती है तो बेचते रहो, करोड़ों के खिलाड़ियों से उनके अपने खेल की नैतिकता पर सवाल मत पूछो, क्योंकि करोड़ों पर उनका हक है, तुम्हारी नैतिकता तो एक मुट्ठी चावल उबालने के लिए जुटाया गया पानी और आग है।
रेडियो गीत सुनाता है, संदेश सुनाता है, बातें करता है, दिल बहलाता है, भावनाएं बनाता है। इसे लटकाओ और चलते बनो। इसकी बिजली या बैटरी का मत पूछना। कम से कम नमक-रोटी के साथ तुम्हें एक आकाशवाणी दे रहे हैं। नमक और रोटी के स्रोत कहां हैं, तुम उसका पता क्यों पूछते हो? तुम्हें आसमान के नीचे सोना है, पैदल चलते चले जाना है, तंत्र के नायकों से जमीन और रास्तों के लिए कैसे कह सकते हो?
और शहंशाहों-भगवानों से कहोगे तो जलने की बात हो जाएगी। वे कहेंगे हमने नाच के कमाया, ताकतवर रहकर भी वक्त जरूरत चुप रहकर कमाया, अपने बल पर कमाया, तुम्हें रेडियो नसीब नहीं तो हम क्या करें?
उनका फरमाना एकदम सही है। यह हफ्ता ही ऐसा है। तीनों को एक साथ खड़ा करके पूछ रहा है, एक की चुप्पी, एक का दंभ और बाकी के सपनों में क्या तालमेल है? बात इतनी सी है कि मनोरंजन के धंधे में करोड़ों का ज्यूस इसी हिंदुस्तान से निचोड़कर निकाला गया है।
नैतिक मूल्यों के बॉक्स ऑफिस की रिपोर्ट भी क्या इनका ट्रेड एक्सपर्ट ही बनाएगा?
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